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________________ - [हिन्दी-मर्ष निर्मा मैं जानता हूँ कि, भगवान् ने प्राणी मात्र को बराबर मावा, और जीव-रक्षा इसीलिए धर्म है। यह तिर्यक गीनि का प्राय: है, इसीलिए वाध्य नहीं हो सकता । कुछ इसका यह तात्पर्य नहीं। कि तुम लोग स्वयं इसके लिए युर करो, और हत्या की संभा की वृद्धि हो ! अतः यदि तुममें कोई सच्चा धार्मिक होतो? श्रागे प्रावे, और ब्राझयों से पूछे कि श्राप मेरी बलि रेल . इतने जीवों को छोड़ सकते हैं। क्योकि इन पशुओं से मनुलों का मूल्य ब्राह्मणों की दृष्टि मे विशेष होगा। आइये, कौन बाता है, किसे बोधिसत्व होने की इच्छा है (बौदों में से कोई नहीं हिवता) प्रख्यात.-(हंसकर)- यही आपका धर्मोन्माद या-एक युद्ध करनेवासी मनोवृत्ति की प्रेरणा से उत्तेजित होकर अधर्म करना, और धर्माचरण की दुन्दुभी वजाना-यही आपकी करुणा की सीमा है। जाइये, घर लौट जाइये १-(प्रामण से) पात्रो रक-पिपातु धार्मिक ! लो-मेरा उपहार देकर अपने देवता को सन्तुष्ट करो!-(सिर मुका खेता है।) । ब्राझण-(तसबार फेककर)-धन्य हो महाभमण 1 में नहीं जानता था तुम्हारे-ऐसे धार्मिक भी इसी संघ में हैं ! मैं बलि नहीं करूँगा। (जनता में जयजयकार; सब धीरे धीरे जाते है।) विश्व-प्रमी कवि . लेखक-परित बदरीनाथ मह) - विश्व-प्रेमी कवि ने मेरे गाँव में प्राकर अपने बांसुरी जैसे स्वर में विश्वप्रेमी का गान सुनाया। छोटे-बड़े सभी मोहित हो गये। 'वाह'वार होने लगी। गीत का भाव यह था कि अपनी आत्मा में चंद्र स्वार्य बंधनात
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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