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________________ श्रीवाणम] गया है। मिन्न भाषाओं के शन्दसांकर्य से सुरक्षित-श्रमिश्रित रहने के कारण ही भाषा का 'संस्कृत' नाम रखा गया है। " संस्कृत में गद्यकाव्य की कमी का कारण जो यह कहा जाता है कि . . वह कभी व्यवहार की भाषा नहीं थी, या संस्कृत 'मृतभाषा है, यह तो , » नितान्त उपहासनीय हेत्वाभास है। सर्वसाधारण अशिक्षित जन समुदाय के व्यवहार की भाषा संस्कृत चाहे न भी रही हो, पर प्राचीन भारत के शिक्षित समाज और राजदरबार की भाषा संस्कृत अवश्य रही है, इसमें तो कुछ भी संदेह नहीं। यह तो प्रमाणसिद्ध सर्वसम्मत सत्य है। व्यवहार की भाषा न होने की , कल्पना के लिए गद्य की कमी की दलील इसलिए भी कमजोर है कि बहुत-सी .. ऐसी भाषाएँ हैं, जो व्यवहार की भाषा थीं फिर भी उनके पुराने साहित्य में गद्य का अभाव है। फारसी भाषा फारस ( ईरान ) मे व्यवहार की राष्ट्रीय भाषा यी, और आज भी है; पर उसका प्राचीन साहित्य भी गद्य से शून्य है । फारसी भाषा के इतिहास लिखनेवाले 'आजाद', आदि विद्वानों ने इस बात को स्पष्ट • 'स्वीकार किया है । दूर जाने की जरूरत नहीं । भारत की राष्ट्र-भाषा हिन्दी ' और उर्दू को ही लीजिये, इसका प्राचीन साहित्य-भण्डार भी गद्य से खाली . ही है । हिन्दी और उर्दू में गद्य का प्रचार बहुत थोड़े समय से हुआ है। प्राचीन गद्य के जो बिखरे हुए अस्फुट नमूने मिलते है, वह न होने के बराबर है, तो क्या हिन्दी और उर्दू भी व्यवहार की भाषा नहीं थी या नहीं हैं। हिन्दी या उर्दू सैकड़ों वर्षों से व्यवहार की भाषा हैं, फिर भी इनका प्राचीन साहित्य गद्य से शून्यप्राय है । संस्कृत भाषा को नवीन विमर्शक या संशोधक व्यवहार की भाषा नहीं मानते, यही नहीं उसे 'मृतभाषा' कहते भी नहीं सकुचाते और इसी आधार पर उसमें गद्य का अभाव बताते हैं । यह निरा + भ्रम या विद्वेषमूलक पक्षपात है । जिन भाषाओं को व्यवहार की भाषा मानने से इनकार नहीं किया जा सकती; जैसे फारमी इत्यादि, उनके प्राचीन साहित्य के गद्य के मुकाबले में संस्कृत के प्राचीन साहित्य में कहीं अधिक सुन्दर गद्य विद्यमान है । उपनिषदों ही. का देखिए, कितना सरस, स्वामाविक, ललित, मधुर, गम्भीर और प्रसन्न गद्य है। पढ़कर तबीयत फड़क जाती है। यह दावे
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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