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________________ [हिन्दी-गद्य-निर्माण मैदान में कल्पना के घोड़े वगटुट दौड़ाए हैं। पाश्चात्य परीक्षकों का और उनके अनुयायी भारतीय समीक्षकों का कहना कि संस्कृत भाषा कभी व्यवहार की भाषा नहीं रही, इसीलिए इसमे गद्य का अभाव है। गद्य की अधिकता उसी भाषा के साहित्य में होती है जो सर्वसाधारण के नित्य व्यवहार की * भाषा है । उनका मत है कि भारत की आदि और प्राचीन भाषा प्राकृत थी। सब कार्य-व्यवहार उसी में होते थे, उसी को सुधार-सवार कर संस्कृत गढी गई है । भाषा का 'संस्कृत' नाम भी इसी मत की पुष्टि करता है-"सम्यक कृतं परिष्कृतम् सस्कृतम्' अर्थात् अच्छे प्रकार परिष्कृत की हुई भाषा । जो चीज पहले विकृत हो, वही साफ करके संस्कृत की जाती है। । प्राचीन भाषा प्राकृत है या सस्कृत, यह एक भिन्न विवादास्पद विषय है । इस पर पहले भी और अब भी बहुत कुछ विचार हो चुका है । संस्कृत बिगड़ कर प्राकृत बनी है, यह वात अनेक विचारशील विद्वानों ने युक्ति प्रमाण द्वारा सिद्ध कर दी है । प्राकृतवादी जिस प्रकार 'संस्कृत शब्द की निरुक्ति से संस्कृत को प्राकृत से निकली हुई भाषा सिद्ध करते हैं, इसी प्रकार संस्कृत के पक्षपाती यही बात प्राकृत पद की निरुक्ति से साबित करते हैं-'प्राकृत. चन्द्रिकाकार का कथन है-"प्राकृतः संस्कृतं तत्र भवत्गत् प्राकृतं स्मृतम् ।" अर्थात् प्रकृति (मूल ) संस्कृत है, उससे उत्पन्न होने के कारण 'प्राकृत नाम पड़ा है। 'शन्दशासनानुवृत्ति' में भी यही लिखा है-"प्रकृतिः संस्कृतं तत्रभवं ततः आगतं वा प्राकृतम् संस्कृतानन्तरं प्राकृतमभिधीयते । अर्थात् संस्कृत के पीछे प्राकृत का नम्बर ह | कात्यायन और श्रीचण्ड ने भी इस सूत्र में इसी ओर इशारा किया है-'तस्मात्संस्कृतवद् विभक्तयः' संस्कृत के समान है। प्राकृत में विभक्तियों का व्यवहार होता है। प्राकृतवादियों की इस युक्ति मे भी कुछ सार नहीं है कि प्राकृत को सुधार कर संस्कृत रची गई है, इसीलिए उसका नाम संस्कृत है। ऐसे बहुत से पदार्थ हैं, जो स्वभाव से ही परिष्कृत-संस्कृत हैं। गगाजल स्वभाव से ही स्वच्छ और निर्मल है। गंगाजल स्वच्छ है, ऐसा कहने पर यह कोई नहीं कह सकता कि गंगाजल 'फिलटर' किया गया है और इसीलिए उसे 'स्वच्छ' विशेषण दिया
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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