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________________ भीबाणभट्ट] १६५ करना सम्भव नहीं और दूसरे इनका सम्बन्ध साहित्य के इतिहास से उतना । नहीं है जितना व्याकरण, अलंकार और पिंगल से है। तीसरी बात यह भी है कि इनमें जातीय विशेषताओं को कोई स्पष्ट छाप भी नहीं देख पड़ती, क्योंकि ये सब बातें थोड़े बहुत अन्तर से प्रत्येक देश के साहित्य में पाई जाती है। श्रीवाणभट्ट.... लेखक-५० पंसिंह शर्मा ] संस्कृत साहित्य मे बाणभट्ट एक अद्वितीय महाकवि थे, जिनके विषष में ' "बाणोच्छिष्ट जगत् सर्व" यह कहावत प्रसिद्ध है। संस्कृत साहित्य के • विधाता एक से एक बढ़ कर महाकवि हुए हैं । संस्कृत-साहित्य अपार महा सागर है । संसार की किसी नई-पुरानी भाषा का साहित्य, दर्शन और साहित्य विषय में, शायद ही संस्कृति भाषा की प्रतिद्वन्द्विता के लिए सफलतापूर्वक सिर उठाने में समर्थ हो सके । संस्कृत-साहित्य का पद्य भाग बहुत ही विस्तृत है। संस्कृत कवियों ने इतिहास, गणित, ज्योतिष, कोष और वैदिक जैसे रूखेफीके विषयों को भी पद्य की जन्तरी में खींचकर रमणीय, हृदयाकर्षक और पठनीय बना दिया है । वह बात किसी और भाषा मे न मिलेगी। निःसन्देह संस्कृत का पद्य भाग सर्वतः सम्पूर्ण और परम प्रशंसनीय है, पर साथ ही गद्य भाग नहीं के बरावर नगण्य है । साहित्य तुला के इस पलड़े को अकेले बाण ने ही अपने गुण-गौरव' से मुकाया है । संस्कृत में गद्य भाग के कुछ और भी अन्य उपलब्ध है सही, पर वह पासंग के बराबर हैं। इस मैदान के मर्द . एकमात्र वाण ही है, इसमें तनिक भी अत्युक्ति या अतिशयोक्ति नहीं। ... गद्य की विरलता का कारण ' . जिस भाषा के साहित्य मे पद्य की इतनी प्रचुरता हो, उसमें गद्य की इस प्रकार की विरलता वास्तव में खटकने वाली बात है। गद्य काव्यं की कमी के कारणों का विचार विद्वानों ने भिन्न-भिन्न दृशियों से किया है, अनुमान के
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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