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________________ ११८ [हिन्दी-गद्य-निर्माण आज से पचास साल पहले रेल कहाँ थी । मैंने मारवाड़ से मिरजापुर तक और मिरजापुर से रानीगंज तक कितने ही फेरे किये हैं। महीनों तुम्हारे पिता के पिता तथा उनके भी पिताओं का घरं बार मेरी ही पीठ पर रहता था । जिन स्त्रियों ने तुम्हारे बाप और वाप के भी बाप को जना है वह सदा मेरी पीठ को ही पालकी समझती थीं । मारवाड़ में मैं सदा तुम्हारे द्वार पर हाजिर रहता था, पर यहाँ वह मौका कहाँ १ इसी से इस मेले में तुम्हें देखकर आँखें शीतल करने आया हूँ। तुम्हारी भक्ति घट जाने पर भी मेरा वात्सल्य नहीं घटता है । घटे कैसे, मेरा तुम्हारा जीवन एक ही रस्सी से बँधा हुआ था। मैं ही हल चलाकर तुम्हारे खेतों में अन्न उपजाता था और मैं ही चारा आदि पीठ पर लाद कर तुम्हारे घर पहुंचाता था। यहाँ कलकत्ते में जल की कलें हैं, गंगा जी हैं, जल पिलाने को ग्वाले कहार है, पर तुम्हारी जन्मभूमि में मेरी पीठ पर लदकर कोसों से जल आता था और तुम्हारी प्यास बुझाता था । “ मेरी इस घायल पीठ को घृणा की दृष्टि से न देखो। इस पर तुम्हारे बड़े अन्न, रस्सियां, यहाँ तक कि उपले लाद कर दूर-दूर तक ले जाते थे । जाते हुए मेरे साथ पैदल जाते थे और लौटते हुए मेरी पीठ पर चढे हुए हिचकोले खाते वह स्वर्गीय सुख लूटते थे कि तुम रबड़ के पहिये वाली, चमड़े की कोमल गद्दियोदार फिटिन में बैठ कर भी वैसा आनन्द प्राप्त नहीं कर सकते । मेरी वलवलाहट उनके कानों को इतना सुरीली लगती थी कि तुम्हारे बगीचे मे तुम्हारे गवैयों तथा तुम्हारी पसन्द की बीवियों के स्वर भी तुम्हें उतने अन्छ न लगते होंगे । मेरे गले के घटों का शन्द उनके सब वाजों में प्यारा लगता था । फोग के जगल में मुझे चरते देखकर वह उतने ही प्रसन्न होते ये जितने तुम अपने सजे वगीचों में भंग पीकर, पेट भर कर और ताश खेलकर " . भग की निन्दा सुनकर मैं चौंक पड़ा । मैंने ऊँट से कहा-वस, बलवलाना बन्द करो। यह बावला शहर नहीं जो तुम्हें परमेश्वर सममे । तुम पुराने हो तो क्या, तुम्हारी कोई कल सीधी नहीं है । जो पेड़ों की छाल और
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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