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________________ , मेले का ऊँट] न जाने श्राप घर से कुछ खाकर गये थे या यों ही। शहर की एक पैसे की पूरी के मेले में दो पैसे हों तो आश्चर्य न करना चाहिये, चार पैसे भी हो __ सकते थे । यह क्या देखने की बात थी ? तुमने व्यर्थ की बातें बहुत देखी, काम की एक भी देखते १. दाई ओर जाकर तुम ग्यारह.सौ सतरों का एक पोष्ट कार्ड देख पाए, पर बाईं तरफ बैठा हुआ ऊँट भी तुम्हें दिखाई न दिया ? बहुत लोग उस ऊँट की ओर देखते और हँसते थे कुछ लोग कहते थे कि कलकत्ते __में ऊँट नहीं होते इसी से मोहन मेले वालों ने इस विचित्र जानवर का दर्शन । कराया है । बहुत-सी शौकीन बीबियों, कितने ही फूल-बाबू ऊँट का दर्शन करके झुककर उस काठ के घेरे मे बैठे हुए ऊँट की तरफ देखने लगे । एक ने कहा• "ऊँटड़ो है। दूसरा बोला-'ऊँटड़ो कठेते आयो ?” ऊँट ने भी यह देख दोनों ।। होठों को फड़काते हुये थूथनी फटकारी । भग की तरङ्ग में मैंने सोचा कि ऊँट ____ अवश्य ही मारवाड़ी बाबूत्रों से कुछ कहता है । जी में सोचा कि चलो देखें वह ' क्या कहता है ? क्या उसकी भाषा मेरी समझ में न आवेगी ! मारवाड़ियो । की भाषा समझ लेता हूँ तो मारवाड़ के ऊँट की बोली समझ मे न आवेगी? इतने में तरंग कुछ अधिक हुई । ऊँट की, बोली साफ-साफ समझ में आने , लगी। ऊँट ने उन मारवाड़ी बाबुत्रों की ओर थूथनी करके कहा "बेटा ! तुम बच्चे हो, तुम क्या जानोगे ? यदि मेरी उमर का कोई होता तो वह जानता १ तुम्हारे बाप जानते थे कि मैं कौन हूँ, क्या हूँ। तुमने कलकत्ते के महलों मे जन्म लिया, तुम पोतड़ों के अमीर हो मेले में बहुत चीजे हैं उनको देखो और यदि तुम्हें कुछ फुरसत होतो लो सुनो, सुनाता हूँ-- आज दिन तुम बिलायती फिटिन, टमटम और जोड़ियों पर चढकर । निकलते हो, जिनकी कतार तुम मेले के द्वार पर मीलों तक छोड़ आये हो तुम उन्हीं पर चढ़कर माड़वार से कलकत्ते नहीं पहुंचे थे ! ये सब तुम्हारे साथ की जन्मी हुई हैं । तुम्हारे बाप पचास साल के भी न होंगे, इससे वह भी मुझे भली-भाँति नहीं पहचानते। मैंने ही उनको पीठ पर लादकर कलकत्ते तक पहुंचाया है।
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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