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________________ पुरुषाधिकार | ९९ २२२ श्राठ जगह रक्खे १ १ १ १११११ । इनके ऊपर सकृत्कारी और असकृत्कारीका पिंड दो दो रक्खे ११११११११ । इनको जोड़नेसे सोलह होते हैं । पुनः इन सोलहको एक एक. विरलन कर रक्खे १११११११११११११११ । इनके ऊपर ऋजुभाव और अनृजुभावका पिंड दो दो रक्खे 33333333333 | इनको जोड़नेसे बत्तीस ११११ होते हैं । इस तरह प्रस्तार रूप स्थापन किये बत्तीस भङ्गोंके उच्चारण करनेकी विधि कहते हैं । प्रियधर्म, बहुश्रुत, सहेतुक सकृत्कारी, ऋजुभाव यह पहली उच्चारणा १११११ । अप्रियधर्म, बहुश्रुत, सहेतुक, सकृत्कारी, ऋजुभाव २११११ यह दूसरी उच्चारणा इसी तरह आगेकी सव उच्चारणा निकाल लेना चाहिए जिनका पूर्ण कोष्टक आगे दिया गया है । मस्तार संदृष्टि इस प्रकार है १२१२१२१२१२१२१२१२१२१२१२१२१२१२१२१२ ११२२११२२११२२११२२११२२११२२११२२११२२ ११११२२२२११११२२२२११११२ २२२२११११२२२२ १२२२२२२ २२२२२२२२२२२२२ ११११११११२२ १११११११ यहां भेदोंका प्रमाण ३२ है और पंक्ति पांच हैं। "भंगायामप्रमाणेन" इस पूर्वोक्त श्लोक के अनुसार पहली पंक्ति में एकान्तरित, दूसरी पंक्ति में द्वय तरित, तीसरी पंक्ति में चतुरंतरित, चौथी पक्तिमें अष्टान्तरित और पांचमी पंक्तिमें षोडशान्तरित लघु
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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