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________________ mmmmmm.in. प्रायश्चित्त-समुचय । प्रक्षालन करे तो उपवास और उवटन, तैलसे मालिस आदि करे तो कल्याणक प्रायश्चित्त देना चाहिए । यहाँपर 'च' शब्द नः कही हुई वातका समुच्चय करता है। इससे यह समझना कि अगर बीमार हो तो कोई प्रायश्चित्त नहीं है तथा शृङ्गार करे तो उसका प्रायश्चित्त आचार्यगण पंचकल्याणक बताते हैं ।। १०० ॥ सर्वभूरिषु भांडेषु मध्यमेष्वमध्यमेषु च । षष्ठं चतुर्थमेवैकस्थितिःसौवीरभोजनं ॥१०१॥ ___ अर्थ-वैयारत्य करनेके लिए जितने भर पात्र लाये जाप उन सबके प्रक्षालन करनेका प्रायश्चित्त एक षष्ठ है। उनमेंसे थोडे पात्रोंके प्रक्षालनका उपवास प्रायश्चित्त है। उससे भी. घोडे अर्थात् मध्य दर्जे के पात्रोंके. प्रक्षालनका एकस्थान पायश्चित्त है और सबसे थोडे पात्रोंके प्रक्षालनका प्रायश्चित्त आचाम्ल है ।। १०१॥ शुद्धेष्वपि च संशुद्धौ कात्स्न्यनाथ पृथक्पृथक् । शोभायै मासिकं चैवमापन्नेष्वप्यशुद्धेषु ॥१०२॥ ___ अर्थ-शुद्ध होते हुए भी वर्तनोंको एक या जुदे जुदे. शोभाके लिये प्रक्षालन करनेका पंचकल्याण प्रायश्चित्त देना चाहिए और प्रक्षालन करने योग्य अशुद्ध वर्तनोंको प्रक्षालन. करनेका भी पंचकल्याणक प्रायश्चित्त देना चाहिए। भावार्थ-- निमित्त जानकर प्रायश्चित्त देना चाहिए क्योंकि इसके अति
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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