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________________ प्रतिसेवाधिकार। AmA. nummmmmmmmmmm पुस्तक आदिके फट जाने पर थोडा शोक करनेका प्रायश्चित्त मिध्याकार वचन है। तथा इस शोकको बहुत काल तक करते रहने, आंसु डाल डालकर रोने और दधि दुग्ध आदि रसोंमें प्रत्याशक्ति होने पर दूसरेको कहनेका कल्याणक प्रायश्चित्त है॥२॥ . सचित्ताशंकिते भग्ने स्यादकेस्थितिदंडनं । बह्वजीवे भवेनिन्दा सजीवे भक्तवर्जनं ॥३॥ __ अर्थ-क्या यह सचित्त है. या सचित्त नहीं है इस तरह आशंका हो जाने पर उस वस्तुके मर्दन कर देनेका एकस्थान दंड है। बहुतसी मासुक चीजोंको मर्दन करनेका प्रायश्चित आत्म-निंदा करना है तथा सजीव चोजोंको मर्दन करनेका उपवास प्रायश्चित्त है ॥३॥ शय्यायामुपधौ पिंडे शंकायामुद्गमैते । उत्पादैश्चतुर्मास्यां मासो मासेऽपि पंचकं ॥ ८४॥ ___ अर्थ-शव्या, उपकरण और आहारमें शंका हो गई हो कि क्या यह आहार सदोष है या निदोष। तथा उद्देशिकादि सोलह उद्गमदोप और धात्रीदत आदि सोलह उत्पाद दोष संयुक्त आहार ग्रहण कर लिया हो और चार माह बीत गये हों तो उसका पंचकल्याणक प्रायश्चित्त है और. एक महीना व्यतीत हुआ हो तो एक कल्याणक प्रायश्चित्त है॥४॥
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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