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________________ प्रतिसवाधिकार । २७. ५। पुरुमंडल और एकस्थान यह छठा भंग६ । पुरुमंडल और क्षमण यह सातवां भग ७। आचाम्ल और एकस्थान यह पाठवां भंग ८। आचाम्ल और तमण यह नौवां भंग ६।एक स्थान और क्षमण यह दशवां भंग १०। ये दश द्विसंयोगी भंग हुए। अब त्रिसंयोगो भंग बताते हैं -निर्विकृति पुरुमंडल और आचाम्ल यह प्रथम भंग १ । निर्विकृति, पुरु-. मंडल ओर एकस्थान यह द्वितीय भंग २। निर्विकृति, पुरुमंडल और तमण यह तृतीय भंग ३। निर्विकृति, आचाम्ल और एक स्थान यह चतुर्थ भंग ४। निविकृति, आचाम्ल और क्षमण यह पंचम भंग ५। निर्विकृति एकस्थान और क्षमण यह छठा भंग । पुरुमंडल, आचाम्ल और एकस्थान यह ससम भंग ७। पुरुमंडल, प्राचाम्ल और क्षमण यह आठवां भग। परुमंडल एकस्थान और क्षमण यह नौवा भंगई। आचाम्ल, एकस्थान ओर क्षमण यह दश भंग १०। ये दश त्रिसंयोगी भंग हए । अव चतुःसंगेगो भंग वताते हैं-निर्विकृति, पुरुमंडल, आचाम्ल और एकस्थान यह प्रथमभग निर्विकृति, पुरुमंडल, आचाम्ल और क्षमण यह द्वितीय भग२ । निर्विकृति. पुरुमंडल, एकस्थान और क्षमण यह तृतीय भंग ३। निर्विकृति, आचाम्ल, एकस्थान और तमण यह चतुर्थ भग ४। पुरुमंडल, आचाम्ल, एक-. स्थान और तमण यह पंचम भंग ५। ये पांच चतुःसंयोगो भंग हुए। अब पंचसंयोगी भंग बताते हैं-निर्विकृति पुरु- .
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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