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________________ चूलिका. २०६ का विघात करने पर उपवास, सत्य अचोर्य, स्वदारसंतोप और परिग्रह परिमाणवतका भंग होने पर पष्ठ प्रायश्चित्त, गुणवत और शिक्षात्रतमें क्षति पहुंचने पर उपवास प्रायश्चित्त तथा सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानमें दोष लगने पर जिनपूजन पायश्चित्त होता है। भावार्थ-सब बाँके सब दाप पैंसठ हैं सो हो कहते हैं। अतिक्रम, व्यतिकम असोचार, अनाचार भोर अभोग . ये पांच मूलदोष हैं इनका अर्थ जरद्वन्यायसे कहते हैं। जरदव नाम बढे गेलका है। जैसे कोई एक वढा गेल अच्छा हराभरा धान्यका खेत देख कर उस खेतको ति (वाड़) के पास खड़ा हुआ उस धान्यके खानेको इच्छा करता है सो अतिक्रम है। फिर वाड़के छेदमें मुख डालकर एक ग्रास लू यह जो उसकी इच्छा है सो व्यक्तिक्रम है फिर खेको बाड़ को उल्लंघ जाना अतीचार है फिर खेतमें जाकर एक ग्रास लेकर पुनः वापिस निकल पाना अनाचार है तया फिर भी खेत में घुस कर निःशंक यथेष्ट भक्षण करना, खेतके मालिक द्वारा दंडसे पिटना मादि अभोग है। इसी प्रकार व्रतादिकोंमें समझना चाहिए। प्रत्येक व्रतमें ये पांच पांच दोप पाये जा सकते हैं। ऊपर वारहवत पोर नीचे भतिक्रप, व्यतिक्रम, अतोचार, अनाचार और प्रभोग इन पांच दोपोंको रखना चाहिए। इनकी. संदृष्टि यह है-. . ११११११११११११ . ५५५५५५५५५५५५ स्यून वृत्त प्राणातिपातके अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतीचार, अनाचार और प्रभोग इस तरह प्रथम अणुव्रतकी पंच उच्चारणा
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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