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________________ - चूलिका। २०७. अर्थ-माया, मिथ्या और निदान इन तीनों शल्योंसे रहित. उक्त छह श्रावकोंको किसी भी तरह गौका वध होनाने पर आदिमें और अंतमें एक एक षष्ठोपवास और मध्यमें इक्कीस. उपवास करना चाहिए ।।१४०॥ सौवीरं पानमाम्नातं पाणिपात्रेच पारणे। प्रत्याख्यानं समादाय कर्तव्यो नियमः पुनः॥ अर्थ और पारणेके दिन पाणिपात्रमें कांजिक-पान करना चाहिए तथा चार प्रकारके आहारका सागकर फिर श्रावक प्रतिक्रमण करना चाहिए ।। १४१ ॥ त्रिसंध्यं नियमस्यांते कुर्यात् प्राणशतत्रयं । रात्रौ च प्रतिमां तिष्ठन्निजितेंद्रियसंहतिः ॥१४२ अर्थ-पूर्वाण्ड, मध्यान्ह और अपराएह इन तीनों संध्या समयोंमें नियम (प्रतिक्रमण) करे। नियमके अंतमें तीन सौ उच्छ्वास प्रमाण कायोत्सर्ग करे और इंद्रियसमूहको वशमें करता हुआ रात्रिमें भी कायोत्सर्ग करे। १४२ ॥ द्विगुणं द्विगुणं तस्मात् स्त्रीवालपुरुषे हतौ। सद्दृष्टिश्रावकषीणां द्विगुणं द्विगुणं ततः॥१४३: अर्थ-स्त्री, बालक और मनुष्य के मारने पर गोवध प्रायश्चित्से दूना दूना प्रायश्चित्त है और सम्यग्दृष्टि श्रावक और ऋषिघातका प्रायश्चित्त उससे भी दना दना है। भावार्थ-जो प्रायश्चित्त गोवधका कह पाये हैं उससे दूना मायश्चिच स्त्रीवध
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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