SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ VALA चूलिका। १७९ आगे केशलोचके विषयमें कहते हैंचतुर्मासानथो वर्ष युगं लोचं विलंघयेत् । क्षमा षष्ठं च मासोऽपि ग्लानेऽन्यत्र निरंतरः॥ अर्थ-लोच किये चार माहसे ऊपर विता दे तो उपवास प्रायश्चित्त, वर्ष विता दे तो षष्ठोपवास प्रायश्चित्त और युग-पांच वर्ष वितादे तो पंचकल्याण प्रायश्चित है। यह विधान रोगप्रसित मुनिके लिए है ओर जो नोरोग है उसके लिए निरन्तर पंचकल्याण प्रायश्चित्त है।६७ ॥ . __ आगे अचेलव्रतमें लगे हुए अपराधोंका प्रायश्चित्त बताते हैं:उपसांदुजो हेतोःणाचेलभंजने। क्षमणं षष्ठमासौ स्तो मूलमेव ततः परं ॥ ६८॥ ___ अर्थ--उपसर्गवश, व्याधिवश और अहंकारवश यदि अचेलवतका भंग करे तो क्रमसे उपवास, षष्ठोपवास, और पंचकल्याण प्रायश्चित्त है। इससे ऊपर मूल प्रायश्चित्त है। भावार्थ-खजन, राजा आदि द्वारा सताये जाने पर अत्यंत संकटावस्थाको प्राप्त होकर यदि कोई मुनि अचेलव्रतका भंग करे-वस्त्र पहन ले तो एक उपवास, व्याधिविशेषके कारण पहन ले तो दो उपवास, अहंकारवश पहन ले तो पंचकल्याण प्रायश्चित्त है। इसके अनन्तर मूल-पुनर्दीचा नामका प्रायश्चित्त है और प्रायश्चित्त नहीं ॥६॥
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy