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________________ १६७ · चूलिंका । हुए पानी में होकर जानेका मायश्चित्त पहले कहे हुए कायोत्सर्ग और उपवाससे अधिक कायोत्सर्ग और उपवास हैं ।। ४० ॥ स्वपरार्थप्रयुक्तैश्च नावाचैस्तरणे सति । स्वल्पं वा वह वा दद्याज्ज्ञातकालांदिको गणी॥ अर्थ-अपने निमित्त या परके निमित्त प्रयुक्त नाव आदिके द्वारा नदी आदि पार करने पर काल आदिको जाननेवाला आचार्य थोड़ा या बहुत (कालको जानकर) प्रायश्चित्त दे। ___ इस विषयमें छेदपिंडमें यह लिखा हैकाउस्सग्गो आलोयणा य णावादिणाणदीतरणे। णावाए जलहितरणे मोही खवणादिपणयंता ॥१॥ सपरणिमिन्चपउंजिद दोणीणावादिणा णदीतरणे। अण्णे भणति एगो उपवासो तह विउस्सग्गो ॥२॥ अर्थात्-नाव आदिके द्वारा नदी पार करनेका प्रायश्चित्त कायोत्सर्ग और मालोचना है। और समुद्र पार करनेका उपवासको आदि लेकर कल्याणपर्यंत हैं। तथा कोई कोई आचाय कहते हैं कि अपने निमित्त या परके निमित्त प्रयुक्त द्रोणो (डोंगी) नाव आदिके द्वारा नदी पार करे तो एक उपवास और कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त है॥४१॥ दक्षेण गणिना देयं जलयाने विशोधनं । साधूनामपि.चार्याणां जलकेलिमहासृणिः॥
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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