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________________ चूलिका। . NAA मद्यमांसमधु स्वप्ने मैथुनं वा निषेवते । उपवासोऽस्य दातव्यः सोपस्थानश्च चेद्वहु ॥ अर्थ-यदि स्वप्नेमें मद्य, मांस, मधु और मैथुन सेवन करे तो उसको उ:वास प्रायश्चित्त देना चाहिए। यदि बार बार सेवन करे तो पतिक्रमण और उपवास प्रायश्चित्त देना चाहिए । तरुण्या तरुणः कुर्यात् कथालापं सकृयदि । उपवासोऽस्य दातव्योऽसकृत् षण्मासपश्चिमः ।। अर्थ-तरुण मुनि तरुण स्त्रोके साथ यदि एकबार वार्तालाप करे तो उसको उपचास प्रायश्चित्त दना चाहिए। तथा वारवार वार्तालाप करे तो छह महीने तकका एकान्तरोपवास प्रायश्चित्त देना चाहिए ।। २६ ॥ स्त्रीजनेन कथालापं गुरूनुलंध्य कुर्वतः। स्यादेकादि प्रदातव्यं षष्ठं षण्मासपश्चिमं ॥२७॥ अर्थ-प्राचार्य, उपाध्याय आदि गुरुओंके मना करनेपर भी यदि स्त्री-समूहके साथ गुप्त बात करे तो उसको एक 'पष्ठोपवासको आदि लेकर छह मास तकके षष्ठोपवास देने चाहिए ॥२७॥ स्त्रीजनेन कथालापं गुरुनुलंध्य कुर्वतः। त्याग एवास्य कर्तव्यो जिनशासनदूषिणः॥ .. अर्थ-(अथवा ) गुरुओंकी आज्ञा न मान कर स्त्रीसमूहके ११
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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