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________________ . . प्रायश्चित्तअब चतुर्थ ब्रह्मचर्य व्रतके विषयमें कहते हैं- .. क्रियात्रये कृते दृष्टे दुःस्वप्ने रजनीमुखे । सोपस्थानं चतुर्थं नियमाभुक्तिः प्रतिक्रमः॥ ___ अर्थ-स्वाध्याय, नियम और वंदना इन तीन क्रिया- . को करनेके अनन्तर रात्रिके प्रथम पहरमें दुःखप्न देखने पर क्रमसे सपतिक्रमण उपवास, नियमोपवास और प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त है। भावार्थ-जो कोई साधु रात्रिके प्रथम पहरमें खाध्याय, नियम प्रतिक्रयण, देववंदना इन तीनों से कोई सी एक क्रिया कर सो जाय पश्चात दुःस्वप्न देखे अर्थात वीर्यपात हो जाय तो उसके लिए समतिक्रमण उपवास प्रायश्चित्त है। उक्त तीनों क्रियाओंमें कोई सी दो क्रियाएं करके सोने पर दुःखप्न देखे तो लघु प्रतिक्रमण और उपवास प्रायश्चित्त है। यदि तीनों क्रियाएं करके सोनेपर दुःस्वप्न देखे तो केवर प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त है ॥२३॥ नियमक्षमणे स्यातामुपवासप्रतिक्रमौ । रजन्या विरहे तु स्तः क्रमात् षष्ठप्रतिक्रमौ॥ अर्थ-त्रिके पश्चिम पहरमें एक क्रिया करके सोनेवाले साधुको दुःस्वप्न देखने पर नियम और उपवास प्रायश्चित्त देना चाहिए। दो क्रियाएं करके सोये हुएको दुःखप्न देखने पर उपवास और प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त देना चाहिए । तथा तीनों क्रियाएं करके सोये हुएको दुःखप्न देखने पर प्रतिक्रमण और षष्ठोपवास प्रायश्चित्त देना चाहिए ॥ २४॥
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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