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________________ चूलिका । गणनाके अनुसार कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त होते हैं-एक इंद्रियका वध होने पर एक कायोत्सर्ग, दो इंद्रियका वध होने पर दो कायोत्सर्ग, तीन इंद्रियका वध होने पर तीन कायोत्सर्ग, चौ इंद्रियका वध होने पर चार कायोत्सर्ग ओर पंचेन्द्रियका वध होने पर पांच कायोत्सर्ग होते हैं। उत्तर गुणवारी प्रयत्नवान् अस्थिरके माण गणनाके अनुसार कायोत्सर्ग हाते हैं। एकेन्द्रियका वध होने पर चार कायोत्सर्ग, दोइंद्रियका वध होने पर छह कायोत्सर्ग, तेइंद्रियका वध होने पर सात कायोत्सर्ग, चौइंद्रियका वध होने पर आठ कायोत्सर्ग, असंज्ञि पंचेन्द्रियका वध होने पर नौ कायोत्सर्ग और संज्ञिपंचेन्द्रियका वध होने पर दश कायोत्सर्ग होते हैं। उत्तरगणधारी अप्रयत्नवान् स्थिरके इंद्रियगणना अनुसार कायोत्सर्ग और उपवास होते है ओर उत्तरगणधारो अपपलवान् अस्थिरके प्राण गणनाके अनुसार कायोत्सर्ग शोर उपवास होते हैं । ये हुए प्रयत्नवान् स्थिर, अस्थिर और अपयत्नवान् स्थिर अस्थिर एवं चार प्रकारके उत्तरगणधारीके अब चार प्रकारके मूलगुणधारीके बताते हैं-मूनगणधारी प्रयत्नचारो स्थिरके इंद्रिय गणनाके अनुसार कायोत्सर्ग होते हैं। मूलगुणधारी प्रयत्नचारी अस्थिरके माणगणनाके अनुसार कायोत्सर्ग होते हैं। मूलगणधारी अप्रयत्नचारी स्थिरके इंद्रियगणनाक अनुसार कायोत्सर्ग और उपवास होते हैं। तथा मूलगुणधारी अप्रयत्नचारी अस्थिर के प्राणगणनाके अनुसार कायोत्सर्ग और उपवास होते हैं ॥४॥
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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