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________________ दाधिकार। रहकर कमसे कम पांच पांच उपवास और अधिकसे अधिक छह छह महीने के उपवास वारह वर्ष तक करे। भावार्थ-जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट ऐसे तीन भेद पार चिक प्रायश्चित्तके हैं। तीनों ही प्रकारका प्रायश्चित्त बारह वर्ष तक करना पड़ता है। कमसे कम पांच उपवास कर पारणा करे फिर पांच उपवास कर पारणा करे एवं बारह वर्ष तक करे और अधिकसे अधिक छह महीने उपवास कर पारणा करे फिर छह महीने उपवास. कर पारणा करे एवं बारह वर्ष तक करे। तथा मध्यम भी छह छह सात सात भादि उपवास कर पारणा करते हुए बारह वप तक करे।। २४६॥ राजापकारको राज्ञामुपकारकदीक्षणः। राजाप्रमहिषी सेवी पारंची संप्रकीर्तितः॥ अर्थ-राजाका अहित चितवन करनेवाला, राजाके उपकारक मंत्री पुरोहित आदिको दीक्षा देनेवाला और पटरानोका सेवन करनेवाला साधु भी पार चिक प्रायश्चित्तके योग्य कहा. गया है।॥२५॥ अनाभोगेन मिथ्यात्वं संक्रान्तः पुनरागतः। तदेवच्छेदनं तस्य यत्सम्यगभिरोचते ॥२५१ ॥ अर्थ-मिथ्यावरूप परिणामोंको प्राप्त होकर पुनः अपनी निन्दा और गर्दा करता हुमा सम्यक्त्व-परिणामोंको प्राप्त हो तथा उसके इन परिणामोंको कोई जान न सके तो उसके लिए.
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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