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________________ AP १२८ प्रायश्चित-समुच्चय । का कोई कार्य साधन करे तो उसको कार्यसाधन कर वापिस आने पर कल्याणक प्रायश्चित्त देना चाहिए ॥ २१५॥ .. सालंबो यत्नतोऽध्वानं योऽभिन्नजति संयतः। निस्तीर्णस्य सतस्तस्य दातव्यं पंचकं भवेत् ॥ अर्थ-जो कोई संयत, किसी देव ऋषिके कार्यके निमित्त यत्नपूर्वक मार्ग गमन करे-कहीं जाय तो उसको लौटकर वापिस आने पर कल्याणक मायश्चित्त देना चाहिए ।। २१६ ॥ नखच्छेदादिशस्त्रादि वास्यादैडकादिके। लघुगुर्वेकचत्वारः परश्वायैश्च कर्तने ॥ २१७॥ ___ अथ-नखच्छेदादि नहीं, छुरा, कॅची श्रादिसे लकड़ी . वगैरह को छलने पर लघुमास, शस्त्रादि छुरी खुरपा आदि से छीलने पर गुरुमास, वास्यादि वसूला आदिसे छीलने पर लघुचतुर्मास और परश्चादि कुल्हाड़ी आदिसे टुकडे करने पर . गुरुचतुर्मास प्रायश्चित्त होता है ।। २१७ ॥ एकहस्तोपलाभ्यां च दोया मौद्रमासलात्। . लघुगुर्वेकचत्वारः प्रभेदादिष्टकादितः॥२१॥ अर्थ-सिर्फ हाथसे ईंट लकड़ी आदि चीजोंको तोड़नेफोड़ने पर एक लघुमास, एक हाथ और पत्थर दोनोंसे अर्वाद • हाथमें पत्थर लेकर तोड़ने-फोड़ने पर एक गुरुमाल, दोनों
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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