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________________ [ ५० ] पन प्रकास अविरणास अलख उद्यास अपपर; सरब वास बसास आस पूरण अति अमर दास दास लीला विलास निगुण ग्रभवास निवारण, ग्रब प्रास निसचरां नास इळा अघ जास उतारण किरिण ठोडि रहै जायो कठ घणी पहचि दातार घण विरिण रूप रेख किरिण दिसि वस निमो निमो तुनारीयरण;॥६॥ नमो नमो नारीयरण इना किम जीव उपाया, अकळ बुद्धि अहंकार नमो नर नारि निपाया, कीयो पाप पुनि कीयो च्यारि खाणे वारण चत्र कीया सुख दुख कीया अनिलि कीधी कीघौ अत्र; भुयण कीया किम करि त्रिगुण जवन देवि सरि जाईया; आदेश नमो तोबह अनत इतरा भूत उपाईया; ॥६२॥ इतरा भूति उपाय एक नवि इंद्री उपाया, दस इद्री दस देव परम करि घणी पठाया; देवा इंद्री दुमेळ कीया भेळा करणा करि, तू सबळी ताहरै सरख वसता एकरण सरि, निगम ही क्रीत माणो नही किसी पार अपार किरि; ताहरै डील सबळी त्रिगुरण पग पाताळ स्रगलोक सिरि, ॥३॥ ॥ छंद हणूफाळ ॥ स्रगलोक सीस सुचग श्रादेस तोबह अंग, परमेस पाव पताळ, कहि किसन घर टीकाळ, ससि सूर लोचन साचि, चत्र वेद वायक वाचि । बुद्धि ब्रह्म निसवावीस, अतकरण कहिजे ईस । नदि अधिक नवसै नाडि, धन धन अंतर धाडि । दधि कूख है जम दाढि गिरिग सरब दांणव गाढ़ि। है हंस माया हास, सहि पवन केसव सास। हिदी धरम विगियो रूप, प्रलोक छात्र अनूप ।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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