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________________ अलख नाम कुरण लहै अनंत कहिर्ज केतो एक । जुनी जुनी नह जीव आप वैराट इतो एक । महाराज ग्यान एकोजमन मरैन तिल जितरौ मिटै। एतोज आप प्रो एतली, घणो हुये नह के घटे ॥ ४० ॥ घट केम घण सामि आप एतौ एतोईज । किसनि सिरौ काढियौ तव तेती तेतीईज । नरा नाह नीपनी पार पाडियो पुरुषोत्तम । भगै आदि भी आज अमर अमरा मां प्रोपम । काळरौ काळ जग पळ कहि नद नद अरणमोल नग। जग(प्र)भूत जग बधू जगत जगत मार आधार जग ।। ४१ पाप जगत आधार त्रिगुण राजा जग तारै। जगत सुख जग दुख जगत करतार जुहारै । जगवासी जग वीर, गे मनि पाप जगत गुर। जग रूप राम मारण जगत, जग जीवन जग ईसवर। जगत रै मोह जगदीस ना जगतनाथ जग माहि नर ॥४२॥ " नरा नाह जगदाह अलख अथाह अपपर । वाह वाह लीला विलास,विमल पाणद लिखमीवर । जगत ठाम जग सामि, जगत रोपण जग रजण। जग वदण जग जेठ, जगत भेदरण जग भजरण । जगदीस जयो तू मूळ जग, जगन धिणी तू जोरवर। जग माहि मरै जीव जगत, निमो देव अरिहत नर ॥४३॥ निमो देव अरिहत, पुरुष परधान पुरातम। परमारथ परतत, · परम अणपार पराक्रम । तूं परमिति परतत, तू हीज पर देव पणीजे । पर उपगारी परम, ग्यान पर रूप गिरणीजे । सुर जेठ अने सकर सिको, अहि अमर मानव उरा। परमेस निमो थारी-पहचि, 'पसे परा सिगळ्यं परा ||
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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