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________________ । ४५ ] | कवित्त ।। ग्यान समद गुण गाइ च्यार मुगित हू चेडे । ग्यान तत गुण गाइ सात सरगा फल झेडे । ग्यान चरित गुण गाइ पाइ लागै परमेसर। ग्यानं बोध सुरगाइ मोख पामै नर अमर। पीरदान ग्यान पतिसाहना करि प्ररणाम लहडा सुकवि। ब्रह्मज्ञान ग्यान दरिसण वड़ी मालहीय हरि नाम मवि ॥३६॥ मवे नाम हरि नाम अध एक मध उचारे। उतिमि एक अति उतिमि सदा चत्रभुजन सभारे। अध सुरणे सहि कोइ अघ मन माहि मिणीज। उत्तिमि भुजन छै उतिमि रिदै विचि राखि रहीजे । अति उतिम भुज न अई औ अई, रोम रोम ऊपरि रहै। जीवतो मुगिति देखे जिकी, साधु सुख अजपा सहै ॥३७॥ अई श्री अजपा जाप अई घण सामि तरणा घरै । अई ओ सुख सरग अई निकळक बड़ा नर । । अत्री रुखेसर अइ, हरिखि करी मन मां हस । अई ओ इदि भगत वसुह ऊपरा वरिस । नद तरणा वाल अईयो निगुण, धन धन अइयो चक्रधर । महा भगति अई महादेवरा, अईयो दता ईसवर ॥३८॥ अईयो ईस अनत नाम कल्याण निरंजण । देव किसन दीपान ग्यान दईतां व गजण । अलख नील इनील विसव विमोह विज्ञानु । जाणै सहि जीतूआ माल मेरो धन धानु। ससार एह असगौ सगौ दईवि आप वासो दियो । कलिमाहि दुख सिनेह क्या कूड कूड साचो-कियो ॥३॥ कीयो कूड़ सा साच इसो संसार उपायो । जायो सरव जगत अलख रहीयो अरगजायो ।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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