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________________ [ २ ] बकुठ सू सखरा लिखमीवर, पाव प्रवीत घणी परमेसर । पगा सरिस सनकादिक पूज, धरणीधर सू पातक धूज धरणीधर नूं जिके ध्यावइ, सरग तणे विचि तिके समाय। उर ऊपर लिखमी पग आरण, पारब्रह्म रा चरण पछाणे । राकस रोळ नमो रावण रा, ब्रह्मा पग वादै बामरण रा। अहिल्या रे ऊपर पग आयौ, पगा तणौ रस गगा पायौ। नारद ही देखें पग नमियो, गेम घणां भगता री गमियो। प्राण मारणे पाव महेसर, पगा तणी दे सेव प्रमेसर। अविगत नाथ पूरिज पासा, त्रिविधि तणाम दिखाळ तमासा । लिखमीवर इहडा विद लीघा, के पहिळाद पुलिंदर कीधा । कितराइ सत वैकुण्ठ कहिया, राघव कहि कहि सरणे रहिया ।। अइयौ मौज जकानु पाप, साधा नै कविलास समाप । अनत भगत तू सा उधरिया, तुझ तणे ऊपरि सांतरिया । भूधर तू भाइयौ भगतां रौ, तूं दातार नही डिगता रौ। ब्रिज रै देस बजाड़ी वासी, बड़े भगत कजि वावि विधासी । साचा तू नै साध सुहावै, तू इ बरीक उधारण पावै । तूं ब्रह्मा रौ वाप वडाळी, वडो तमासी वसदे बाळौ । तू कालपत करै कितराई, तू जलनिधि रै अक जमाई । तू करतार अकिरता कहीजै, लखण तुहारा किम करि लहिजे । जगत कहै सहि दशरथ जायौ, अविगत धारौ नाम अजायो। जगपति तू सिगळा री जामी, भगत वछळ सहजा ना भांमी। भगति समापि समापि भलेरी, जाड़ अविद्या घात जलेरी। भगति नहीं तोड मन माँ भीजी, राघव पीर तणं सिर रीजौ । माव कठण तुहारी मिलणी, भूधर सा किम प्रावै मिळरणी। त्रीकम हूँ अभ्यागत तोतो, गिरधर लाल म घाते गोती। झुरण दिऊ मां झालौ झालो, केसवराइ हुवी हूँ कालौ। केसव कीरति कहडी कीजै, दान हुवै सौ दीजे दीजै ।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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