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पीरदान लालस ग्रन्थावली
॥ श्रीरामजी सत छै जी॥ ॥अथ गुण नाराइण नेह लिख्यते ॥
॥ गाहा चौसर । ब्रह्माणी ब्रह्म माहि विगति, सही एक तू तीन सकति । कि हकि करै केसव कीरति, सु प्रसन हुइ माता सरसति । सरसति पाखर समपीजे, देवी वयण अमोलक दीजै । किहि मति सारै कीरति कीजै, राधा वर इहड़ी विधि रीजै ।
॥चौपाई॥ इसाणंद गुरु चित मां पारणा, वेद व्यास नां पछै वखारणा । समरा प्रथिमि प्रथिमी सारद नां, निमिस्कार ब्रह्मा नारद नां। लील विलास सुरां मा लाइकि निमो पुलदर देव विनाइकि । संकर नां पिरिण करा सलामा, गोविंद रा आदेस गुलामां। 'पीरदास पढि रे पाराइणि, निमो निमो निरगुण नाराइर्ण । नाराइण नरहर बहुनांमी, सतगुरु सांमि सकळ रौ सांमी। भगत वछळ भगवत भुजाळी, देवां सिर हर दीनदयालो । माहव मुकुद मुरारि महमहण, तेजवत राजा दशरथ तरण । कान्हड़ किसन नाथरणी काळी वडी धरणी वीठुल वनमाळी । वड़ी धिरणी नां रखे विसार, श्राप तरणी जे प्रांगण उधारै। प्रेम भगति रौ आखर पीजै, करणाकर सों नेह करीजे। करणाकर कररणाकर कहता, प्राण तिके वैकुण्ठ मे पहुँता। मधुसूदन नू जुदा म मेले, ठाकुर नां मत अळगो ठेले । पूज पूज परमेसर प्राणी, वेद कहै अ अमृत वाणी । वेद किसन यूँ घणौ वरवाणे, जनजीवन री महिमा जाणे ।