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________________ [ १२ ] ऊपरि (२०)-रक्षा, सहायता। (३८, ४१, ४२, ४५) ऊपर। ऐ (6)-ये। ऊपायरण (८०) उत्पन्न करने वाला। ऊभ (१४) उभय, दोनो। ऐन (८८)--और। ऊभ (६१) उभय, दो। ऐसहि (६०)-ऐसे ही। ऊभी (११, १२)-खडा। | ऐह (५)—यह । ऊलटा (८५)—उलट पडे, युद्धार्थ यो आक्रमण किया। श्रो (३)-अरे, वह । ऊलट (५९)-उलटा, विलोम, विरुद्ध । | अोखा (३०)-ऊपा-वाणासुर की ___ कन्या जो अनिरुद्ध को व्याही ए (१५) है, यह, है। गई थी। (३१, ५६) यह अोछडी (७६)—छोटा, तुच्छ । एक (३७) एक। पोछाह (६७) उत्सव, हपं । एकल-मल (२७)-ईश्वर का एक नाम । अोछरी (४०)-लघु, छोटा। एकलमल (४, ६८, ९४)—पारब्रह्म, प्रोण (७, २५)-चरण, पैर । विष्णु, सर्व शक्तिवान, अकेला | ओथि (३०)-वहा । ही कइयो से युद्ध करने वाला। | पोथी (३०)-वहाँ। एकलमला (१०)-ईश्वर का एक नाम । प्रोपम (४६)-शोभा देता है। एकिरिण (३०, ४७)—एक । ओपि (५७)-शोभित होकर । एतलौ (४६)-इतना। प्रोपियों ( ५४, ५६ )--शोभायमान एतोज (४६)-इतना ही। हुआ। एतौ (४६)—इतना। ओपै (५३)-शोभा देते हैं। एथि (१६)—यहा। (६०)-शोभित होता है । एथीय (१३, १४, ६०)यहाँ । __(१०३,-शोभायमान होती है। एम (३७, ५३, ६०)—इस प्रकार । एरसा (८९)-ईर्ष्या । ओळखिय (२)-पहिचाना जाना । एह (३, ३५, ४१, ४२, ४४, ४५, ओळखियो ( ३४)-पहिचान लिया, ४७, ६७, १०१, १०३) यह, ये। समझ लिया । एही (८७) यही। | ओळख (३५)-पहिचानता है।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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