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________________ श्री विहरमान विशति जिन गीतम् मुझ मन तुझ चरणे लयलीनउ, जिम मधुकर अरविंद जी। पाणी वल पिण पास न छंडइ,लीणउ गण मकरंद जी ।।२।।मु०॥ चपल पणइ चूकस्यइ तउ पिण, मत छोडावउ तीर जी। तू तर ऊतर आपइ त्रटकी, गरुआ हुवइ गभीर जी॥३॥मु०॥ बोजा नइ बगसीस करंता, मत मूकउ वीसारिजी। पति वंचउ परहरउ पातक, अवर न छइ ससारि जी॥४॥मु०॥ वात सह नउ ए परमारथ, सांभलि सामि विशाल जी। श्री 'जिनराज' निरास म करिज्यो, करिजो का संभाल जी।।५।।मु०॥ (१०) श्री सूरप्रभ जिन गीतम् देशी-मेघमुनि काइ डम डोलइ रे कीजइ छइ जेहना सह जी, वचने वचन प्रमाण । ते जो आपणपइ मिलइ जी, तउ हुवइ कोडि कल्याण ॥१॥' सूरप्रभु अवधारउ अरदास, जिम तिम पूरउ मुझ आस ॥सू०॥ देई तीन प्रदक्षिणा जी, आणी अधिक जगोस । प्रभु आगलि ऊभउ रही, प्रश्न करू दस वीस ।।२।।सू०॥ वलि पूछू हिव केतलउ जी, भमिवउ छइ ससार । आंधी ना सटइ पडथा जी, भमतां नावइ पार ॥३॥सू०॥ पोतानी करणी पखइ जी, तारी न सकइ सामि । पिण वाटइ वहता सहू जी, पूछ कितले गांम ॥४॥सू०।। जिण दिन प्रभुदरसण हुस्यइ जी, लेखइ पड़स्यइ तेह। ते धन दिन 'जिनराज' ना जी, इण परिवउलइ जेह ।।५।।सू०॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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