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________________ २२ जिनराजसूरि कृति-कुसुमांजलि ए माहरउ ए पारकउ, साहिव न करइ कोइ विचार । तउ पिण आवी नइ जुडड, साहिब आगलि परषद वार ।४।को० सुख दुख पिण पूछइ नही, साहिव तउ पिण तुम्ह सुप्रीति । ऋषभानन सहु को करड, साहिब ए तुझ नवली रीति ।५।को० नयणे नयण निहालता, साहिव मोहइ सहुअ समाज । आपणपइ अलगउ रहइ, साहिब मोह थको 'जिनराज' ।।को०, (८) श्री अनन्तवीर्य जिन गीतम देशी- सदगुरु माहरइ नादइ भेहीयो. २ नारी अब हमकु मोकलो. अनंतवीरिज मइ ताहरट, नाम सुण्यउ जिनराज । हिव जिम तिम वल फोरवी, आपउसिवपुर राज ॥ १०॥ जउ हू जोऊ मो दिसा, तउ न मिलइ तिल मात । पिण तो चीतवतां सहू, वरइ पडे सी वात ||२||अ०।। जे मइ कोधी नव नवी, करणो कोडि प्रकार । तिण हु तो प्रभु छोडवइ, तउ हुवइ छूटकवार ॥२॥१०॥ भवसायर बीहामणउ, जिहा किण वाट न घाट। तूं तारइ तउ हिज तरू, सवला ऊझड़ वाट ॥४॥०॥ छोरू सहिज उछाछला, कोडि विणासइ काम । पिण मावीत न मिट सकइ, जिम तिम परइ हाम ॥५॥१०॥ (९) श्री विशाल जिन गीतम् देशी-प्रादरि जीव क्षमा गुण आदरि आपणपइ हूँ आवी न सकू, मूक्यउ छइ परधान जी। जउ साची सेवा सारइ, तउ राखेज्यो वान जी ॥१॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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