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________________ २४ जिन राजसरि रति-धुनुमा लि (११) श्री वज्रधर जिन गीतम टाल-पीडानी एक सवल मन नर धोखउ टल्या , ___ लाधड साहिब चतुर सुजाण रे। जेहु भगति करिसु ते जाणिस्यइ, वज्रधर केवलनाण प्रमाण रे ॥ए०॥१॥ दूर थकउ पिण जउ साच मनइ रे, सुमरण करिस्यु वार विचार रे । तउ पिण ते अहल्यउ जास्यइ नही रे, ____ फलस्य भव भव कोड़ि प्रकार रे ।।ए०॥२॥ भतरगति अंतरजामी लहै रे, ते प्रभु साचउ सुख नउ बोज रे । जे गुण नइ अवगुण जाणइ नही रे, तेसु निसदिन करिवउ धीज रे।।ए०॥३॥ चूक पड़इ जउ किण ही वात नउ रे, ___ तउ पिण न धरइ तिलभर रीस रे । तूसइ पिण कईयइ रूसइ नही रे, ए मुझ प्रभुनी अधिक जगीस रे ।। ए०॥४॥ ते तउ कहीयइ नाह न कीजीयइ रे, जेहनइ आठे पहर अंधेर रे। श्री जिनराज' अवर सुं मीढता रे, मेरु अनइ सरसव नउ फेर रे ॥ए॥५॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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