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________________ जिनराजसूरि-कृति - कुसुमांजलि 4 मात तिरण हेतु पडखु नही, धरम बिरण एक निमेष रे || १०|| मा० ॥ कुल तरउ तिलक श्रीनेमिजी, हित भरणी जे कही बात रे तुरत भेदी सुरणी माहरी, सात ए धरम सूं बात रे ॥११॥ मा० ॥ नेह मुझस्यु अछइ तांहरउ, मात निज चित्त विचार रे । १६८ व्रत परखड माहरउ भव थकी, किम हुवइ छूटकवार रे || १२||मा० ॥ मानवी बीनती माहरी, मानवी जेम* नवि थाय रे । मानवी गति वली दोहिली, मानवी गत कहिवाइ रे || १३ ||मा०|| खिराइ पुराइ खिण मइ गलइ, पुदगल तिग रची काय रे । । थिर एह तिर कारणइ, धरम प्रावइ चित दाय रे || १४ || मा० ॥ काम किपाक तरणी परइ, भोग ए जारिण भुय ग रे । कामिनी कटनी दामिनी, सारिखी किम करू सांग रे || १४ || मा० नेमि पामउ हिव आदरू, सुमति गुपति धरू सार रे दाव पूरइ करम जीपिनइ, हेलिस् वरूं सिवनारि रे ॥ १६ ॥ मा • सीख री बात कहसी खरी, सिव भलउ किन स सार रे । हित हुवइ ते मुझ नइ कहउ, अवर मत करउ विचार रे ||१७म० || सकज कुल मांहि होवइ तिको, आपणउ भरणी ओठभरे । आपि नइ ऊ च पदवी दियइ, सुकृत थी सहुय सुलभ रे ॥ १ ॥ म० नेमि जिरणवर तरणी मुझ भरणी, आपरणउ जागि ए माग रे । सुद्ध कहउ सिवपुर तउ, अधिक तिग्गा एहवइ राग रे || १εम० ताहरइ मात ऊपर हथइx, सीझस्यइ सकल मुझ काज रे । नेमि परसादि वद्यारिस्यु लोक माहे अधिक लाज रे ||२०|| मा०|| 1 [सर्व गाथा ३४७] ॥ दूहा ॥ वचन तिसी परि ए तजई घरबार । इण सम बीज को नहो, जीवन प्रारण आधार ||१|| कहइ, सही . जे X ह
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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