SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .3 श्री गजसुकमाल महामुनि चौपई माता इम मनि चितवइ, वलि काढू मन भास । मानउ भावइ नवि मनउ, जिम सउ तिम पचास ||२|| [सर्व गाथा ३४६ ] ढाल - २० आज लगइ धरि अधिक जगीसे-एहनी ताहरउ भार वुही * दस मास । मन माहे छइ मोटी आस । जउ तूं वीस करइ वेषास । अलगउ न कुरू जा घटि सास || १ || नीठि जुडइ दुरबल घरि प्राथि । तिम तू लागउ छइ मुझ हाथि । जे मइ दुख दीठा तुझ साथ । तेतउ जारगइ छइ जगनाथ ||२|| खमि न सकू विरहउ खिरण मात । तउ किम बउलइ मुझ दिन राति । सजम ल्यइ न कहु इरण जाति । १६६ लौहडइ लीकx पटोलइ भाति ||३|| मुगाँ सवल चढइ छइ टाढि । मुझ ग्रागलि ए वात म काढि | एक पखउ इम करतउ गाढि । तू चाढइ छइ विमरणउ वाढि ||४|| किम छोडिसि बाध्यउ जेवडइ । गलि वधन मुझ सू बेवडइ | जउ मुझ नइ जामिरिण त्र े वडइ । तउ मत घालइ दुख एवडइ ||५|| डलकइ + कुभ पलक वेगलइ । जलधर जेम नयन वे गलइ । किम नीकलइ बचन ए गलइ । मुझ नइ तजि मयम वेग लइ ||६|| तू तउ छइ माहउ केलव्यउ । पिरण किरणही दीसइ छइ भोलव्यउ | आज मनोरथ तरू पालव्यउ | ऊपाडि नाखइ तिम- लव्यउ ॥७॥ जे जामरिण नइ दुव द्यइ जारिए । कोधउ तापु धरम श्रप्रमाण । निपट करिसे जउ खाँचो तारा | ? प्रारण हुस्य तउ आगेवारण ||८|| हर *मुई X लीह + ढलकं तेन वाणी
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy