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________________ श्री गजसुकमाल महामुनि चोपई ताणी तोडीजइ नही, अरज तरगउ हिव काम | माता नइ ऊबेखता, न रहइ जगमइ नाम * ॥२॥ व्रतनी जे मनसा धरी, ते न किरणइ मेटाइ । तउ पिरणाम सतोषिवा, कीजइ दाय १९७ उपाय || ३ || [सर्व गाथा ३२७] ढाल - १६राग गउडी - मोरो मन मोहयो इण डूंगरे- पहनी वीनति एक अवधारीयइ, वीनवु बी कर जोडि रे । पूरवइ कवरण जामरिण पखइ, पुत्र ना लाड नइ कोडि रे ॥१॥ मात मुझ अनुमति दीजियइ, जिम लीयुं सयम भार रे । पार संसार सागर तरणउ, पामिवा इरण अवतार रे ||२|| मा०|| भव थकी मुझ मन ऊभग्यउ, खिरण इक ढील न खमाइ रे । सारथवाह सिवपुरि तरणउ, नेमि जिरणवर मिल्यउ आइ रे ॥३म० रडवडयउ एकलउ जीवडउ, आज लगि काल अनंत रे । पुण्य सयोग श्रावी जुडयउ, भव भय हरण भगवत रे ||४|| मा० || नरक तिरयच भव नव नवी, जेह वेदन विकराल रे । ते की आज मुझे छोडिवइ, यादव परम दयाल रे ||५|| मा० ॥ सरस मदिरा जीसी मोहनी, एहनी प्रति घरणी छाक रे । परवसि पडियउ जीवडउ, प्रति कटुक करम विपाक रे || ६ || मorl विषय रस विरस मई जारिया, सरस संयम तर उ सगरे । प्रभु वचन भव तप X मेटिवा, सीतल जेहवउ गंग रे ||७||मा० ॥ अरथ नइ काम पिरण धरम थी, धरम विना सहु धध रे । • आज मइ कारिमउ जाणियउ, सकल संसार संबंध रे ॥८॥ मा० ॥ करम मल हिव पडघउ पातलउ, प्रभु वचन श्रोषध जेमरे । परम आरोग्य कारण हुस्यइ, तिरण घरणउ भ्रमस्यु प्रेम रे || मा० मुगति मारग भरणी जाइवा, सुद्ध ए साघु नउ वेष रे । * जनम मे माम x सपति
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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