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________________ १८२ जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि सगपण बीजा पिण अछइ रे लाल, मात तणी कुण होडि रे वा०॥शावि०॥ दुखनो वेला सभरइ रे लाल, माता अधिकी तेण रे वा० । मात तणा गुण तेहवा रे लाल, खीर जलधि जिम फेरण रे वागागावि०॥ मुझ लघु बधव जाँ लगइ रे लाल, न हुवइ तां लगि मात रे वा० । काल एह किम नीगमइ रे लाल, दुख सहती दिन राति रे वा०॥शावि०॥ चिंतातुर मत चितवइ रे लाल, हरि हर करि मन माहि रे पा० । सुर सा निधि कारी छतां रे लाल, मुझ नइ सी परवाह रे वा०॥६॥वि०॥ पोसहसाला प्राविनइ रे लाल, निश्चल मन धरि आपरे वा 01 अट्टम भत्त नियम धरइ रे लाल, करतउ सुरनउ जाप रै वा वि. दूर दोहिलउ साधतांरे लाला, कारिज जे छइ कर रे वा० । तप करतां सुर सानिधइ रे लाल,पूजइ वछित पूर रे ॥८॥वि०॥ सुर परतिखि हुई इम कहइ रे लाल, लघु बंधवनी प्रासरे वा० । तुझ सफली थास्यइ सही रे लाल, पारण मुझ वेसास रे वा०वि०॥ हरिरणे गमेषी इम कहइ रे लाल,साँलि वलि मुझ वात रे वा० । देवलोक थी चवि करी रे लाल, कोइक सुर विख्यात रे वा०॥१०॥वि०॥ तुझ जननो कुखि अवतरी रे लान, सकल मनोरथ पूरि रै वा० । तरुण पराइ व्रत प्रादरी रे लाल, __ तरिस्यइ नेमि हरि ₹ वा०॥१२॥वि०॥ देव तणी वाणी सुगी रे लाल, हरि मन हरखित थाय रे वा० । + वरिया।
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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