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________________ t श्री गजसुकमाल महामुनि चोपई वचन कही सुर एहवउ रे लाल, निज सुर भवरणइ जाय रे वाँ०॥१२॥वि० ॥ देव वचन सुरिण देवकी रे लाल, हरि मुख थकी सहेज रे वा० । सीह सुपन एकरिण निसइ रे लाल, देखह पउढी सेज रे वा०|| १३ वि० हरखी मन सतोष सू रे लाल, स्वपन तराइ अनुसार रे वा० । पुत्र रतन मुझ थाइस्यइ रे लाल, ↓ १८३ देव कुमर अनुहार रे वा० ॥ १४१ वि० ॥ सुखइ गरभ वहती थकी रे लाल धरती चित्त उमेद रे वा० । पूराईजइ डोहला रे लाल, तिरण नवि मन को खेद रे वा०||१५|| वि० ॥ सर्व गोथी १६८ ॥ दूहा ॥ समान । नवे मासे परे थए, कोमल कमल पुत्र रतन तिरिंग जनमियउ, गुरण गरण करि श्रसमान ॥ १ ॥ जासू बंधक लाख रस, पारिजात नव जेम । तरुण दिवाकर सारिखउ, श्रोपम* वररणइ एम ||२|| नयन कत गज तालुप्रा, सरिखउ कोमल गात । रूपइ तृपति न पामीयइ, जोवंता दिन राति ॥३॥ [ सर्व गाथा २०१] ढाल १२ वालुरे सवायु वयर हैं माहरउ रे - " पहनी लगन महूरत वेला सुदरू रे उच्च ग्रह अधिकार | बारवली तिथि योग विचारतां रे, उत्तम रयरिग उदार ॥ १ ॥ शुभ लक्षण सुत जनमइ देवकी रे, पामई हरख पडूर || २ || शु० ॥ सुप्रसन सगला दिसी तिर समइ रे, वायु वायइ अनुकूल । कोईन हुवइ इरण परि सूचवइ रे, पुण्य उदय प्रतिकूल ॥ ३ ॥ ० ॥ "उपसम F
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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