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________________ श्री गजसुकमाल महामुनि चौपई १५१ न कयउ एह नउ सासरउ कान्हइया, करिसाँ तावड आज रे कान्हइया लाल ॥१६॥९० मोटी जगि । मइ मोहनी कान्हइया, उदय थई मुझ आज रे कान्हइया लाल । बीजउ कोइ नवि लखइ कान्हइया, जागइ ते जिनराज रे कान्हइया लाल ॥१७॥हुँ। [सर्व गाथा १८० ] ॥ दूहा ॥ एम सुरिण मन चितवइ, हरि इवडो अदोह । मातानउ मोटु नही, तउ न रहइ मुझ सोह ॥१॥ स्यउ मुझ नउ* समरथ परणउ, नवि फेडु दुख एह । माता तणउ जउx माहरइ, मुखि जन देस्थइ खेह ॥२॥ करि न दिखावु. जा लगइ, तां न मिटइ ए सोक । भूख न जायइ भामणइ, जागइ सिगला लोक ॥३॥ [सर्व गाथा १८३] दाख-११ कोइलउ परबत धूधलउलो रे+- एहनी माता ना- आस्वासना रे लाल, आपी चितवइ एम रे वाल्हेसर। मात मनोरथ विरण फल्यां रे लाल, सोभ रहइ मुझ केमरे वाल्हेसर ।।।। विनयवत नर सलहियइ रे लाल, साचा ते ससारि रेवा० । मात पिता गुरु ऊपरइ रे लाल, . भगति धरइ निरघारि रे वा०॥३॥वि०॥ सकज (इ) पुत मावीतना रे लाल, पूरइ वछित कोहि रे वा० । "म्हारो xतो +कहिन किहां थी मावियो रे लान-एहनी -नद
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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