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________________ १२६. आत्मा देह संवध ३ विदेशी मेरे आइ रहे घर माहि ६७ १२७, परमारथ पिछानो ६ तू भ्रम भूलउ रे प्रातम हित न करइ ६८ १२८. 'जागउ' प्ररणा ५ सोवन की वरीयां नाही बे १८ १२६. जीव शिक्षा ३ मेरउ जीव परभव थी न डरइ ६६ १३०. परदेशी गीत ५ परदेशी मीत न करीयइ री १९ १३१. भात्म शिक्षा ५ भ्रम भूलउ ता वहुतेरउ रे १०० १३२. परमार्थ-साधन - जकड़ी गीत ३ रे जीउ प्रापरणपउ अब सोच १०० १३३. किरण हू पीर न जागी ३ पिउ कइ गवरिण खरी अकुलारणी १०१ १३४. पिउ-पाहुणो ३ जब जाण्यउ पीउ पाहुणउ १०१ १३५. आत्म प्रवोष तेरा कोन ? ३ जीउ र चाल्यउ जात जहान १०२ १३६ स्पर्धा ३ कहा कोउ होर करउ काहू को १०२ १३७. जकड़ी गीत देह चेतन-वृत्ति ५ लालण मोरा हो,जोवन'मोरा हो १०२ १३८, पंचरग काचुरी देह ४ पंचरंग कोचुरी रे वदरग तीजइ धोइ १०३ १३६, जाति-स्वभाव अज्ञानो शिक्षा ३ कहा अज्ञानी जीउ कुं रुगु . ज्ञान १०३ १०. परमार्थ अक्षर ३ तुम्ह पइ हइ ज्ञानी कउ दाबउ १०४ १४१. जकडी गीत वहाँ की खबर ३ मेरे मोहन अब कुण पुरी वसाई १०४ १४२. परदेशी प्रीति ३ कवहुँ न करिरी माई मीत विदेसी १०४ (क)
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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