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________________ आत्म शिक्षा गीत आत्म शिक्षा गीत राग-सारग जीवन मेरे यह तेरउ कउण विसेस । साधु कहात करत धन आशा, ता तइ हो फिरत विदेस ॥१॥ज०॥ पेम कइ फंद परत जण जण सु , ता विण धरत अदेस । देखि पर रमणि नयनो नचावत, अरु पठवत सदेस ॥२जी० __ कूप परत कर दीप लई जो, तिण सुका उपदेस । _ 'राजसमुद्र' भणि लहि परमारथ,सफल करउ इहु भेस ।।३जी० सीखामण गीत राग-केदारा गउडी. घर छोडि परदेस भमइ, मेलिवा बहु परि आथ । परलोक जातां जीवनइ काई, नावइ रे ते पिण साथ ॥१॥ जीवन लाल सुरण इक मेरे सीख । । जेहवी मीठी रे सरस रस ईख ॥जी॥आंकणी।। करि कूड परिजन पोषीयइ, ते सहु रंग पतंग । वोलाइ मरहट थी वलइ, कोइ नावइ रे ताहरइ संग ॥२जी० गोरडी प्रमुख मिली रडई, स्वारथ पुकारइ ताम । पुण एम मनहि न चीतवइ, पिसुडइ पामइ रे किण गति ठाम ॥३॥जी॥ वड बड़ा नरवर इम चाल्या, तू करइ कवण आलोच । जिण वाय ऊडइ हाथिया, तिहा केही रे पूणी नी सोच ॥४जी०
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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