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________________ जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि वि० आइ जुडइ जब साय, तब तउ तू न सकइ रही वि० । वि० अइसउ मत न तंत, राखु हू अछर गही वि० ॥४॥ वि० भरि भरि नयण म रोय,करि कायर काठउ होयउ वि० । वि० मोगल नवसर हार.सो साथइ संवल लीयउ वि० ॥५॥ वि० जे वउलाऊ साथि, तासूम करे रूसणउ वि०।। वि० दूजण न हसइ कोइ, काज न विशासइ आपणउ वि०॥६॥ वि० लाखीणउ दिन जाइ, चेतन तूं चेतइ नही वि० । वि० 'राजसमुद्र' इम सीख, अपणइ आतम कुंकही वि०१८) आत्म शिक्षा गीत राग-गउड़ी इक काया अरु कामिनी परदेसी रे, ___ अंत न अपणी होइ मीत परदेती रे । संग न काहू कइ चलइ परदेसी रे,आप विमासी जोइ मी० ॥१ तास भरोसउ क्या करइ प० ने विछुरइ उखार' मी० । ' मइसउ साजण ढुंढिलइ प० जे पहुंचावइ पार मी० ॥२॥ आगइ सेज न पाथरी प० ले किछु सबल साथि मी० । पीछइ पछतावइ कीयइ प० आथि न आवइ हाथि मी० ॥३॥ घर बइठां दिन वहि गए प० केस भए सब सेत मी० । अजहु कछु विगरयउ नहीं प० चेत सकइ तउ चेत मी० ॥४॥ अपणउ अपणउ क्या करइ प० अंतर करहु विचार मी० । 'राजसमुद्र' कहइ देखि लइ प० स्वारथ कउ संसार मी०१५। १- जे हुवइ जावरणहार - -
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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