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________________ हर्दन जिनराजसूरि कृति कुसुमांजलि इक चलs आवइ एकलउ, भव रुलइ एक अनेक । आपणे कीधे करमडे, जीव पावइ रे सुख दुख एक || ५जी० || ससार सहु ए कारिमउ, कारिमउ ए परिवार । राय कुमर कोरव सउ पडया, ते गिणिया रे गान गधार || ६ || जी० ॥ इम जाणि जिन धम कीजियइ, जिम पामियइ भव पार । 'राजसमुद्र' सीखामण दीयइ, जीव चेतउ होयड़ा मझारि ||७|| जी० ॥ जकड़ी गीत राग - वेलाउल. w मेरउ नाह निहेजउ, अब मइ जाण्यउ री सहेली । अतरगति न कही काहू सु ं, आप विदेस चले जउ ॥ १ ॥ मे० ॥ विछुरत पीर न होत विरह की, निस दिन रहत सतेजउ । मग जोवत कबहु न पठायउ, काम दहू कउरेजउ ॥ २० ॥ अलख सरूपी कु सदेसउ, तुम भी हिलि मिलि भेजउ । 'राज' वदति फिरि जाब न पाउ, करिहु कठिन करेजउ || ३ || मे० ॥ आत्म-प्रबोध जकड़ी गीत राग - सारंग मल्हार हमार माई कत दिसावर कीनर । बायइ जोर हुकम साई कइ, पल भरि रहण न दीनर || हम० ||१|| जाव कहा दरगाह करइगउ, चलिहइ खाइ खजीनउ ।
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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