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________________ जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि नख सिख ऊपरि वारियइजी,अवर सुर असुर सउवार॥रलो० देव दीठा घणा देवले जी, सीस न नामणउ जाइ। मधुकर मालती रइ करइजो अलवि अरणी न सुहाई ॥३लो० एक पग त्राण ऊभा रही जी, सेवियइ जउ जगदील। लोचन तपति पामइ नही जी,ए प्रभु अधिक जगीस ॥४ालो० पेखीयइ तोरण पइसतां जी, जे करइ स्वर्ग सुवाद । च्यार गति ना दुख छोदिवा जी, चिहु दिसइ च्यारि प्रसाद ॥५शालो। 'याहरू' सुकृत नउ वाहरू जी, सलहीयइ मात तसु तात । संघवी सघनायक पखइ जी, अगमइ कवण ए वात ॥६लो. कीजीयइ चोल तणी परइ जी, प्रीति परमेसर साण। श्री 'जिनराज' भवो भवे जी,तू हिज देव प्रमाण ॥७॥लो०।। श्री लौद्रवपुर पार्श्वनाथ गोतम् जाति · मोमनडउ हेडाउ हे मिश्री ठाकुर वइदरउ एहनी आज नइ वधावउ हे सहीअर माहरड, आणंद अंगन माइ। लोहग निधि साहिब त्रेवीसमउ,नयरणे निरख्यउ आइ ॥१० प्रभु परतख न मिलइ पंचम अरइ वीस करूं वेषास। पिण मोहन मूरति जड़ पेखीयइ, आवइ मनि वेसास ।राआ० दूर थको तीरय महिमा सुनी, खरी हुती मन खंति । लाख कहउ लोचन दीठां पखइ,नेट न हुवइ निरंति ॥३॥आ० मनहरणी तोरण ची कोरणो चिहु दिसि जिणहरि च्यारि। तिम पगला नवला थिवरांतणा, ऊजलगिरि अवतार ४०
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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