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________________ भी गौड़ी पार्श्वनाथ स्त० ४६ कमल कमल बिहसइ मन हुलसइ, रोमांचित हुवइ देह। मन नी होवीतग वात न कहि सकु ,नवलउ निवड सनेह ॥५॥अ० मइ भूलइ भमतइ कीधी हुस्यइ, देव अवरनी सेव । ते अपराध खमा आपणउ, चरण कमल परगमेव ॥६॥आ०॥ आज घडी सुघडी लेखइ पडी, जीवत जनम प्रमाण । भगति जुगति 'जिनराज' जुहारतां,आज भलइ सुविहाण।७।आ० श्री गौड़ी पाश्वनाथ स्तवन बालेसर मुझ वीनती 'गउड़े चा' राय, अलवेसर अवधार रे ग० प्रगट थई पाताल थी ग० सेवक जन साधार रेग० ॥१॥ आंखि थइ उताबली ग० दरसण देखण काज रेग०॥ पाणी न खमइ पातली ग० दे दरसण महाराज रे ग०॥२॥ तुसाहिब सुपनंतरइ ग० मिलइ अछइ नितमेव रे ग०। तउ पणि आयउ ऊमही ग० सइ प्रति करिवा सेव रेग० ॥३॥ जउ पोतानउ त्रेवडउ ग० सगली भांति सदीव रे ग । नीची ऊची वात मइ ग० तउ मत घालउ जीव रेग०॥४॥ देव घणाइ देवले ग० दीठा ते न सुहाइ रेग० । इक दोठा मन हुलसइ ग० इक दीठा अउल्हाई रे ग०॥५॥ काल्हे वाल्हे माहरइ ग० कोधी खरीय सवील रेग० । * दरसण देवा तइ नकी म० पाणी वलि पणि ढील रे ग०॥६॥ तइ कोधउ तिम तुकरइ ग० राखी चिह मइ लाज रे ग० । वलि अवसरि संभारज्यो ग० इम जंपइ 'जिनराज' रेग०॥७॥ श्री अमीझरा पाश्वनाथ गीत परखि पास अमोझरइ, भेटीजइ भविअण भावइ रे।
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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