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________________ श्री ने मिराजीमती वियोग सूचक गीतम् - ४७ तबर्बाह गरीब निवाज विराजउ, हम से निज भगत निवाजउ ॥या०॥२॥ तउ रिंगजरण मो मन रंजउ, जउ सेवक से अरिअण गजउ या०॥३॥ जउ अंतरगति न लहउ सामी, तउ तुम्ह कइसे अंतरजामी या०11०॥ जउ जाणउ 'जिनराज' हमारउ, तउ मोहि कूरम निजरि निहारउ या०॥५॥ श्री नेमिराजीमती वियोग सूचक गीतम् राग-वेदारउ मेरइ नेमिजी इक सयण । अउर ठउर न दउर करिहुँ, कबहुमो मन भयरण ॥१॥मे०॥ सुण्यउ निसि भरि जबहि चातक, रटत पिउ पिउ वयन । पलक बादल वौचि उमड़े, सजल जलधर नयन मे०॥ विगु पीऊ कइसइ प्राण राखु, पलक भर नही चयन । 'जिनराज' राजुल कनक कुंदन, जोरि यादु रयन ॥३॥मे०॥ श्री लौद्रवपुर पार्षनाथ स्तवनम् जाति-मोरयानी 'लोद्रपुर' पास प्रभु भेटीयइ जी, मेटीय मन तणी भ्रांति । परतखि सुरतरु सारिखउ जी,खलक नी पूरवइ खंति शलो० निरुपम रूप निहालतां जी, कविजन करइ रे विचार ।
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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