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________________ (:१६१) (१७) लक्ष्मीवंत वर्णन:उँची तो' अजान पाहु,' वागनो पानुदेव ॥ गोरी तो फटर्प, कालो" तो कृष्ण ॥ चलो जीने नो यामागे, योटो नीम तो पुन्यवन्त । जो ऊँचा बन्न पहिन तो राजेश्वर, सामान्य वस्त्र पहिरै तो तुमो टाता तो कवितार, जो न दे तो' 'छाना पुन्य करें वगुं बोले तो भोलो, न बोले तो मितभाषी जो लपट तभोगी, जो नपुंमक तो परनारि सदोटर इत्यादि । (वि० पु०) एक अन्यप्रति में उक्त पाठ विशेष मिलता है। नुक्तिनारी प्रतोलीद्वार, सकल तत्व भहार कर्मवल्ली छेदन कुठार, चतुर्दशयोद्वार पचपरमेष्टि नवकार, पंदपावतार (पू०) थोदुं जिमइ तउ सुकुमार, झगडदू तउ व्यवहार अपहुंचवाण तउ पूरउ, जउ पहुचइ तउ सूरत लक्ष्मीवत जिमि करइतिमि छाजइ, 'धीर' जिम बोलइ तिम विराजह इति वर्णकसभा कुतुहल में यह पाठ अधिक मिलता है। (१८) लक्ष्मीवंत ( २ ) लक्ष्मीवतु । जइ ऊचउ तउ अजानु बाहू, जउ खाटरठ तउ वामण वासुदेव । गोरउ तउ कटर्प, कालउ तउ कृष्ण सोह गालउ । १ उचउ तउ • अर्जुनवाहु ३ वामणउ तउ ४ गोग्उ ५. कालउ ६ पूरउ आहार ७ खूनउ ८ जर दातार ६ जइन घइ १० तउ ११ साचदापी १२. महायोगी। ११
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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