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________________ ( १६० ) (१४) भाग्यवान तसुताइ रूपइ कुलि वहद्द, सोनमा मोर ऊडइ मोन बेले राति विहार, पटउवे भूमि बहुरिय चीतविया पासा पडद, ऊघउ करता पाधरउ था लक्ष्मी बाहिरि मूसाविइ, उपरि परसह, इस दीहाडउ || (१५) पुण्यवंत जसु तराइ प्रदक्षिणा वर्त्त शख । चिंतामणि रत्न फरस पाखाण, सोना तण्उ पुरिसउ । कोटीं वेध रम, काली चित्राचलि वेलि । चोटिया द्राम, नल तरणि हीरउ । कवडी पोतइ, साखिणी पढमिणी वेउ लक्ष्मी निधान कलस श्राणइ | लाखी कर दीवउ प्रज्वलइ, कोटिध्वज लहलहइ । जसु तराइ रूपइ कोलू वहइ, सोना ना मयूर उडइ । सोवने फूले राति विहाइ सपाल्य सोना पहिरियइ । पटउले भूमि बाहिरियइ, चीतविया पासा पड़ा । ऊधउ करता पाधरउ थाइ, लक्ष्मी वारणई लाखई । अनइ ऊपर वाडइं पइसइ, इसिउ दीहाइत । (१६) पुण्यवंत (२) नाणे धनढ यक्ष तूठउ, नागे करि वेताल सेवावाहि पइठउ । नाणि करि कल्पद्रुम फलिउ, किरि काम घट श्रावी मिलिउ । किरि कामधेनु गृहाणि बाधी, किरि नवनिधि तीणि लाघी । किरि चिंतामणि रत्न हाथि चडिउ, किरि पूर्व भवभाग्य ऊघडिउ । अथवा कल्प वैलि घरी गराइ पइठी । अथवा महालक्ष्मी मूर्ति मले घरि पइठी । भवति भूरिभिः ॥ १- गृणामणि । 2
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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