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________________ वीरवांण :: नीसांणी रजवट जोइया राठवड़ जुटा षळ जके । सेल भचड़का युं सहै किरमाळ कड़के ।। जरदाळा पर जोसमै कैमर खरळकै। धड़ पड़िया सिर धांफरै मुष मारस बकै ।। तेग धड़ां भड़ बिछड़े पड़ लोथ दड़कै । भंड़ घमसांण प्रमाण भल जमरांण जऊकै ।। अषाडै असमांनमै रथ भाण ठहकै । एसा गोगा धीर दे प्रांण चढ़ीया चकै । गुणीयण ऊभा बादमै वोहळा जस बकैः । बरवा हुरां अछरां बेहुं हकबकै ।। दोनुं प्रोड़ां पेग दे लोही धकधकै । जांणक भरीय पषालदा मुष पोल्या सिके । धरती पड़ीया धीरदे वायक मुष बकै । जांण न पावै जीवता नर गोगा जकै ॥ १२२ धीर पोहडे घेत विच सिर बिछडे धड़ । उदल हेसु पाहडै बड जोस बड़ बड़ ।। कंवर भिडवा कारण असमान भुजा अड़ । जोध वेह रिण जुटीया षळ पाग षड़ा षड़ ।। पड़ीया अस भड़ पाषती रिणसु कैम छड़ । काळ तणी गत कोपिया भिडीयाळ महा भड़ ॥ पंषणीयां भष पूरीया रिण रैणा रतड़ । च. विमांणां चालीया लंकाळ बेहं लड़ ॥ उदल हैसु धीर दे रिण षेत विचा पड़ । १२३ चड: वड धानंष चाढीया गुण किध भणंका । तीर छछोहा. छुटगा नह सु जतनंका॥..
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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