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________________ ३ वीरवाण मानै भाभी माहरो वायक सिर माले । बैठी रोसै बापन कर मुंडे कालै ॥ दुहा झडपे बुकण लेवसी, दोलत दामो दाम । आसी वा भी आपने, तो सिर मुंड तमाम ॥ १२६ वीरमनै वर माळतां, मिटी अकल कसमीर । बुकणरो घर बूडसी, नदी बहते नीर ॥ १२७. गोडेमै जारै गया, धारा · जकै धणीह । वेहीज मारण उठीया, तेवर चूक तणीह ॥ १२८ सींहांनै सलषांणीयां, त्यांरी एक तरेह । .. श्रा दुअ पतीनो धरो, कुण विसवास करेह ॥ १२६ तिरिया हठ झाले तिको, मैलै नांहि परत । गम विन वाजै बेगमां; ज्यांरो नाम जगत ॥ १३० मेले जादम मोदसुं, बीरमनै नालेर । आप परणवा आवजो, विचै म करजो वेर । सार छतीसुं संकै, मसतक बांध्यो मोड़। वीरमदे चढीयो बिडंग, रचे चूक राठोड़ ॥ १३२ नीसांणी बुकणदे घर व्यावदां रंग राग रचांणा । चारण भाटां चोहटां गरटा दिवरांणा ॥ मन कुंता बहु मालरा लेषां लिवरांणा । बेहुं मुदाइ वादसी बे त्याग करांणा ॥ सोनारां घर सांपरत संचगर दिवरांणा । कंठीयां कड़ा मुंदड़ा घण घाट घडांणा ॥ ४८ १३१
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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