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________________ ४५ वीरवाण सो पाछा साहियाणमै अोठा ले आया । दाढे नित अवगुण दलो सलषांण सवाया। युं देपाले अषियो सुण दला लुणीयांणी ।। वास चोवीस वसावीया वक झूठी वाणी । तो मारे धर लेवसी वीरम सलषांणी ।। तडछै. जासी जोइयां आयो आपांणी। दूहा १२३ १२४ १२५ मुदै जवाइ मारीयो, लीधो सारो डांण । मसतक टोपी मेलन, सुंप परी साहीयांण ॥ दलो कहै देपालदे, मांझी बंस मरोड़ । भाया गुण भूलो मती, प्रो वीरम राठौड़ । दुसह वचन कहीया दलै, जोइयांनै जजमाय । तिण समीयै पुगल तणो, भाटी बूकण आय ॥ नीसांणी बुकणरै दोय बेटीयां गत एक नीहालै । नाम बडी कसमीरदे परणो देपालै ॥ रांनल कंवरी राजवण ग्रभ अछरां गाल । सो मांगी देवराज युं कर जोड़ हतालै ॥ रांनल मुझकुं राजवण भाभी परणालै । भावज गुण भूलां नहीं |म षोड़ विचालै ।। कहीयो जद कसमीर दे चढ़ क्रोध अचाले । हुँ परंणांसु हिंदवां तुरका हरटालै ॥ . सो कुण हिंदु हम सुणां जिसकुं परणालै । परणांसुं . सगपण करै वीरम विगतालै ॥ . जद पाछो कहीयो जसु आगम अषताले ।
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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