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________________ वीरवाण. कूट असायच काढ़ीया षग बाड पीराया। कमंध बतीसुं गांवसै सेत्रावा. पोया । सेवै वीरम सधू बड थिर थानक थाया ॥ देवराज जैसिंघदे, विजै सहत वरवीर । सैत्रावै राषै सधर, कंवर तीर कंठीर ।। १०५ ... . . . नीसांणी . . . जोइयां पोहचावण ज दिन उमंग मन आणी । देषण भागनेर दिस पोह कीध पलांणी ॥ कुंडल वीरमदे कमंध परणे भठीयाणी । नर गोगादे नेमीयो जग साष जपांणी ।। रचे हगांमा राग रंग रिण तुर रूड़ाया। . दान हजारां दरब दै बध रीत सवाया । इम जोईयां घर अावीया भूपत मन भाया । उरड़ मोतीयां थाळ भर वीरम वधवाया। कर उछंब घर घर कितां गुण मंगळं गाया ॥ ३० . . . दूहा . पांनां फूलांमैं प्रकट, दलो पुगावै देस । आयो ‘वोरम आपरै, नाहर थाहर नेसं ॥ नीसांणी वीरम कुरंगां वळवै कैकांण कुदावै । • जका षटक जगमालरे मनमै नहीं मावै ॥ वीरम भारत वंकडो आगमणी न आवै । दलै रीज समाद दी संसार सरावै ॥
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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