SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीरवाण असुर दिली दल ऊपर अस एम उठाया। पाग चमकी बीज ज्यूं घण घाव लगाया ।। केता रुंड मंड काट कर रिण जंग मचाया। असुर गया रिण प्रोसके माले डकराया ।। कीलम अरावा त्यार कर दूजै दिन पाया ।। रावलजी मालदेजीरो दूजो झगड़ो भुरजां भुरजां भीरड़ गढ बड़ नाळ गड़की । सोर धुंवारिण घोरसुं धर अंवर ढकी । आयर वीज अचीतकी असमान कड़की। भुप तुराटां भेळीया जुध कारण जकी ।। आलम अालम अषीयो धज नेज फरकी। रजवट वंका राठवड़ जुटा षळ जकी ।। म्लेछ तड़फड़ मारका गीधाण गहकी। पत्र भरे रत पूरिया वीरांणव भकी ॥ . जै जै जर्षे जोगणी आसीस अछकी। अपछर आय उतावळी हूरां वर तकी ।। आसुर दळगा अोसके यण घावां छकी। सुणियां वायक पातसा सेना वेहुं संकी ।। ६. दळ मेले गोरी दुझल, तीजै झगड़े तैड़ । मारां रावळ मालन, पोस लेवां गढ पेड़ ।। ३३ । सांहां वायक एम सुण, दे डाढी पर हत्थ । अला अला उचारकै, दळ मेले समरत्थ ॥ ' ३४
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy