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________________ वीरवाण . . दहा राडधरो कायम कीयो, नरनामी नष तैत। . मेली रावळ मालन, जबर बधाई. जैत ॥ . नीसांणी .. .' लंगर लघु लार वैह. दळ पार न पाई । . . मालबीयो बलराव है जैचंद वीजाई । राज करै धूम रीतसों बध क्रीत सवाई । . घर घर पाणद है घणा थित मंगल थाई ॥ - महपत रावल मालरी प्रज फूलां छाई। . मंडलीकां ज्यु मालदे वंका बरदाई ॥ ५ . इण रीत रावल. मालदेजी गुडै नगर राज करै जकां दिनाँ समीघांणैसु रावल जैतसीजी इडर गुजरातने चडीया। जाय राडधडे उतरीया। जठे अनंदै दो- कोटड़ीयां जाय राडरै पंमारांनै आदमी बांवनसुं मारनै राडधरौ लीनौ तरी राड़ संपूरण । - मालदेजीरो समो लिषते । . दूहा . भायां परधानां भडां, दळबळ अथग दुझाल। कीधो उछब कांमती, मीण धर रावळ माल ॥ ६ रावल मालो राजवी, राज करै धुम रूप। .. बारां. हरचंदरा वहै, सागे सरग सरूप ॥ वीरम भाई बांकडो, ज्यूं बेटो जगमाल । दत्तक भाव रचावा दुनी, साह उरांरा साल ॥ तबेलै मालह तणे, पाणी पंथा पमंग । सांवत दरगह सूरमां, वे असवार उमंग ॥ तीकां दिनां मणीयर तीसो, दूजो नांही देस । घर घर व्यांवे घोड़ीयां, वदै वीछेरा वेस ॥
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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