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________________ १५ . - वीरवाण मदो दे सिरवालीया न सीस बीच चिमुढी । टेपे एकती फीयु जाण चांच बहुटी ॥ तुटे होवै मिसरी वाच वहादर फूटी । झमदे तेग सलपीयांण किरवाणी तुटी ॥ तर मेपे लास लपोयांण छेड तुरंग उगाही । वीरम दुही मिसरी सारमांतांही ॥ तुटी होय मिसरी बहादर सरांही । वाहण हारा क्या करै जब फवै नांही ॥ . वार्ता वीरमदे तरवारि वाहिनै आपरा साथमै पालो जाय. उभो रह्यौ । वीरमदेजी पिछतावो करै छै । जे मांहरी वाही मदो जीवतो रहै तिको आज दीसै छै। यां रै हाथ षेत श्रावसी । जैतसी देपालांणी को दीठो जिका कर गयो छै। आज आपां सगलांन मारसी। तरै जोईयां विचार दीठो समाधि वछेरी जैता थे फेरी छ । सो तोनै इणरी कीमत छै। तिको तुं इगताली डाकै ढोल वजाय । ज्यु समाधि वछेरी ना तो वीरम देपालो हुवै । तो अपे भेला होय नै वीरमदे ने मारा। इतरै वीरमदेजी वाग उठाई । वीरमदे नै आंवतो देष जैतसी इगताली ढोल वजायौ नै होकार कीया । तरै समाधि तो नाचण लागी ज्यु ढोल वाजै ज्यु घोडी नाचै । आधो पग नचातरै । तरै दोलै गहलोत कह्यो । वडा ठाकुर उरो आव । अबै परो मरावै छै । तरै वीरमदे घोड़ी पाछी वाली । तरै जैतसो पाछ श्रायनै घोडीरा पाछलां पगारै झटका री दीधी नै घोड़ी तो हेठी पडी। तरै वीरमदेजी लाराने उतरीया । तिणरी साधरी । नीसांणी आंबदीया हीघ तीय न छोह छोही दगी सै। • जैतल झाडी कराचली आप केही वगी ॥ · समाधि दीयै क्यु नां रही त्रिगनालि विलगी। उझकै देता जिण करै निहु होय पगी ॥ वीरम समाधि कूद ही होकार देई । धाई धाई अखीय ढोल वजैघाई जैतलघुई ॥ मिसरी सो वन जडाई उतरीया कर्मध जै पगवडाई । वीरम समाधि गुझाय के असमाधि उपाई ॥
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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